धुंधली तरसी अंखियां
आज दिनांक २६.३.२४ को प्रदत्त स्वैच्छिक विषय पर प्रतियोगिता वास्ते मेरी प्रस्तुति:
धुंधली तरसी अंखियां निशदिन रस्ता देखें तेरा:-
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न जाने क्यों ज़िन्दगी मे शाम सी घिर आई है,
तुम बिन ज़िन्दगी मे साजन,हमने ये सज़ा पाई है।
कहां गये वो कसमे - वादे, कहां गये वो फरियादें,
आ कर लें जाओ तुम शूल बनी अपनी यादें।
तुम बिन नहीं कोई आराइश,तमस भरा ये जीवन है,
गीत मेरे अवगीत हो गये,अवकीर्ण हुआ मेरा मन है।
डरती हूं मैं जीवन-पथ से,रस्ता है बहुत घनेरा,
धुंधली तरसी अंखियां निशदिन रस्ता देखें तेरा।
तन्हा मुझे बना कर तुमने ,जीवन की इच्छा ही हर ली,
तरणी मेरी इस जीवन की तिरोहित तुमने कर दी।
मेरे चाॅंद तारों के नभ मे तुम प्रमोद बन आए,
अभी चापल्य यौवन था मेरा,तुम अवसाद ले आए।
विकांक्षा भरी मेरी ज़िन्दगी,अप्रतिभ हो कर रहती,
निर्निमेष हो मेरी आंखें शून्य मे ताका करतीं।
अब साम्राज्य फैला है निशि का दूर तक नहीं सवेरा,
धुंधली तरसी अंखियां निशदिन रस्ता देखें तेरा।
आनन्द कुमार मित्तल, अलीगढ़
Gunjan Kamal
10-Apr-2024 02:05 PM
बहुत खूब
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kashish
27-Mar-2024 03:42 PM
Amazing
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Punam verma
27-Mar-2024 08:07 AM
Very nice👍
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